अनदेखे लक्षण, स्थायी नुकसान : गुर्दे के स्वास्थ्य का सच, जानें गुर्दा रोग के विशेषज्ञ, NHS अस्पताल के डॉ. संजय कुमार से
Punjab News Live -PNL
June 25, 2025
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न्यूज डेस्क, (PNL) : गुर्दे यानी किडनी हमारे शरीर का एक बेहद महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। यह दो बीन्स की तरह के आकार वाले अंग हमारी रीढ़ की हड्डी के निचले हिस्से में मौजूद रहते हैं। रोज़ाना हमजो कुछ भी खाते और पीते हैं, उसका असर हमारी किडनी पर पड़ता है, क्योंकि ये अंगखून को साफ करने, अपशिष्ट बाहर निकालने, शरीर में पानी और खनिजों का संतुलनबनाए रखने और ब्लड प्रेशर नियंत्रित करने जैसे कई काम करते हैं।
MBBS, MD मेडिसिन, DrNB नेफ्रोलॉजी डॉ. संजय कुमार बताते हैं कि ये दुःख की बात है कि भारत में लोग गुर्दे की देखभाल को लेकर बहुत कमजागरूक हैं। जब तक कोई लक्षण सामने आता है, तब तक बीमारी काफी बढ़ चुकीहोती है और नुकसान स्थायी हो चुका होता है। इसीलिए यह जरूरी है कि आम लोगोंको किडनी से जुड़ी बीमारियों और उनकी रोकथाम के बारे में जानकारी दी जाए।
गुर्दे क्यों ज़रूरी हैं?
गुर्दे सिर्फ पेशाब बनाने वाले अंग नहीं हैं, बल्कि वे हमारे शरीर की सफाई और संतुलनबनाए रखने का काम करते हैं। उनके प्रमुख कार्य हैं:
•रक्त से विषैले पदार्थ और अपशिष्ट हटाना
•शरीर में पानी, सोडियम, पोटैशियम, कैल्शियम और फॉस्फेट जैसे खनिजों कासंतुलन बनाए रखना
•शरीर का pH और इलेक्ट्रोलाइट संतुलन बनाए रखना
•ब्लड प्रेशर नियंत्रित करने वाले हार्मोन (रेनिन) का निर्माण
•हड्डियों को मजबूत रखने के लिए विटामिन D को सक्रिय करना
•लाल रक्त कोशिकाओं के निर्माण में मदद करने वाला हार्मोन (एरिथ्रोपॉयटिन) बनाना
जब ये सभी कार्य बाधित होते हैं, तो पूरे शरीर पर असर पड़ता है – दिल, हड्डियाँ, खून, फेफड़े, दिमाग – हर अंग प्रभावित हो सकता है।
क्या है क्रॉनिक किडनी डिज़ीज (CKD)?
क्रॉनिक किडनी डिजीज यानी दीर्घकालिक गुर्दा रोग एक ऐसी स्थिति है जिसमें किडनीधीरे–धीरे काम करना बंद कर देती है। यह प्रक्रिया महीनों या वर्षों तक बिना किसीलक्षण के चलती रहती है। जब लक्षण दिखने लगते हैं, तब तक 60–70% किडनीपहले ही खराब हो चुकी होती है।
भारत में CKD के सबसे बड़े कारण हैं:
•डायबिटीज (मधुमेह)
•हाई ब्लड प्रेशर (उच्च रक्तचाप)
इसके अलावा अन्य कारण भी हैं:
•परिवार में किडनी रोग का इतिहास
•बार–बार मूत्र मार्ग संक्रमण होना
•मोटापा, धूम्रपान, शराब सेवन
•लंबे समय तक पेनकिलर या बिना डॉक्टर की सलाह वाली दवाओं का सेवन
•60 वर्ष से अधिक उम्र होना
लक्षण क्या होते हैं?
CKD के शुरूआती लक्षण अक्सर नजर नहीं आते, लेकिन जब बीमारी बढ़ जाती है, तोकुछ सामान्य लक्षण दिखाई देने लगते हैं:
•पैरों, चेहरे या पेट में सूजन
•थकान और कमजोरी
•सांस फूलना
•झागदार या बार–बार पेशाब आना
•भूख न लगना और उल्टी जैसा महसूस होना
•रक्तचाप का बढ़ना
इन लक्षणों को नजरअंदाज़ करना भारी नुकसान पहुँचा सकता है।
क्या CKD से बचा जा सकता है?
हां, CKD को रोका जा सकता है या इसकी गति को धीमा किया जा सकता है। इसकेलिए ज़रूरी हैं:
•ब्लड शुगर और ब्लड प्रेशर को नियंत्रित रखना
•नियमित व्यायाम और संतुलित आहार
•पेनकिलर या हर्बल दवाएं बिना डॉक्टर की सलाह के न लें
•यदि आप जोखिम वाले समूह में हैं (जैसे डायबिटीज, हाई बीपी, परिवार मेंइतिहास), तो साल में कम से कम एक बार किडनी की जांच करवाएं – क्रिएटिनिन, eGFR, यूरिन प्रोटीन की जाँच
•शुरुआती लक्षण दिखें तो तुरंत नेफ्रोलॉजिस्ट से संपर्क करें
भारत में CKD की स्थिति
भारत में लगभग 17% जनसंख्या CKD से प्रभावित मानी जाती है। लेकिन ज़्यादातरलोग इस बारे में जानते ही नहीं हैं। विशेषज्ञों की भारी कमी है – पूरे देश में करीब 2500 नेफ्रोलॉजिस्ट हैं, जबकि आबादी 140 करोड़ से अधिक है। इसका मतलब है कि कईमरीजों को समय पर इलाज नहीं मिल पाता।
ग्रामीण और अर्ध–शहरी क्षेत्रों में हालत और भी खराब है। वहाँ न तो सही जांच कीसुविधा है और न ही विशेषज्ञ डॉक्टर। कई मरीज अंतिम अवस्था में ही अस्पताल आतेहैं, जिससे इलाज की संभावना कम हो जाती है।
कुछ राज्यों में एक विशेष किस्म की किडनी बीमारी भी पाई गई है, जिसे CKDu (Chronic Kidney Disease of unknown cause) कहा जाता है। इसके कारण अबतक स्पष्ट नहीं हैं, लेकिन यह बीमारी बिना डायबिटीज या बीपी के भी हो रही है।
CKD का असर सिर्फ किडनी तक सीमित नहीं
जब किडनी ठीक से काम नहीं करती, तो शरीर के अन्य अंगों पर भी बुरा असर पड़ताहै:
•दिल की बीमारियाँ – हार्ट अटैक और स्ट्रोक का खतरा बढ़ जाता है
•एनीमिया और कमजोरी
•हड्डियों की कमजोरी और फ्रैक्चर
•बार–बार संक्रमण होना
•मानसिक तनाव और जीवन की गुणवत्ता में गिरावट
•जल्दी मृत्यु का खतरा
CKD का अंतिम चरण: ESRD
जब किडनी पूरी तरह से काम करना बंद कर देती है, तो उसे End Stage Renal Disease (ESRD) कहा जाता है। ऐसे में मरीज को ज़िंदगी भर के लिए डायलिसिसया किडनी ट्रांसप्लांट की जरूरत होती है। लेकिन भारत में इलाज की लागत अधिकहोने के कारण कई लोग डायलिसिस शुरू नहीं कर पाते, या बीच में ही छोड़ देते हैं।कई बार आर्थिक तंगी के कारण मरीज समय पर अस्पताल नहीं पहुँचते और जान सेहाथ धो बैठते हैं।
NHS अस्पताल, जालंधर की भूमिका
NHS Hospital, Jalandhar, क्षेत्र का एक प्रमुख और अत्याधुनिक नेफ्रोलॉजी केंद्र है, जहाँ सभी प्रकार की किडनी समस्याओं के लिए इलाज उपलब्ध है:
•24×7 डायलिसिस सेवाएं
•ICU और गंभीर रोगियों के लिए विशेष डायलिसिस (CRRT)
•किडनी बायोप्सी और इंटरवेंशनल प्रक्रियाएं
•ब्लड प्रेशर और डायबिटिक किडनी रोग के लिए विशेष क्लिनिक
•उन्नत जल शुद्धिकरण प्रणाली और संक्रमण नियंत्रण प्रोटोकॉल
हमारा उद्देश्य है – हर वर्ग के मरीज को गुणवत्तापूर्ण, सुलभ और सस्ता इलाज देना।
क्या बदला जा सकता है? (नीति और जागरूकता की आवश्यकता)
देश में CKD को नियंत्रित करने के लिए इन बातों की आवश्यकता है:
•राष्ट्रीय स्तर पर CKD स्क्रीनिंग प्रोग्राम
•सरकारी सहायता योजनाएं – जैसे डायलिसिस सब्सिडी, ट्रांसप्लांट में सहायता
•ज्यादा नेफ्रोलॉजिस्ट और डायलिसिस तकनीशियनों को प्रशिक्षित करना
•आम जनता के लिए जागरूकता अभियान
•अंगदान (Organ Donation) को बढ़ावा देना
•निजी और सरकारी भागीदारी से ग्रामीण क्षेत्रों तक सेवाएं पहुँचाना
डॉ. संजय कुमार का संदेश:
“मैंने अपने 7+ वर्षों के करियर में हजारों किडनी मरीजों का इलाज किया है। मेराअनुभव कहता है कि अगर लोग समय पर जांच करवा लें और शुरुआती लक्षणों कोहल्के में न लें, तो CKD को रोका जा सकता है। बीमारी से बचाव इलाज से कहींबेहतर है।”
निष्कर्ष (Take-Home Message):
गुर्दे शरीर का मौन लेकिन बेहद जरूरी हिस्सा हैं। थकान, सूजन या पेशाब में बदलावजैसे मामूली लक्षण भी गंभीर खतरे की घंटी हो सकते हैं। CKD एक “साइलेंट किलर” है – यह बिना शोर किए शरीर को धीरे–धीरे खोखला करता है।
अब समय आ गया है कि हम किडनी की सेहत को गंभीरता से लें। स्क्रीनिंग करवाएं, जागरूक रहें और समय पर डॉक्टर से सलाह लें।
क्योंकि जब बात किडनी की हो – तो हर दिन, हर जाँच और हर फ़ैसला ज़िंदगी बचासकता है।