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पंथक सियासत में उलझी खडूर साहिब सीट, किसी के लिए भी आसान नहीं होगी संसद की राह, पढ़ें

न्यूज डेस्क, (PNL) : पंजाब की खडूर साहिब सीट इस बार पूरी तरह पंथक सियासत में उलझ गई है। शुरू में इस सीट पर मुकाबला जितना आसान लग रहा था, चुनाव नजदीक आते-आते यह उतना ही पेचीदा होता जा रहा है।

खडूर साहिब क्षेत्र को सिखों का पवित्र स्थल माना जाता है। गुरुद्वारा श्री खडूर साहिब के नाम से ही यह जगह प्रसिद्ध है। यहां सिखों के आठ गुरुओं ने भ्रमण किया था। श्री गुरुनानक देव यहां पांच बार आए थे।

लोकसभा चुनाव में वारिस पंजाब दे के प्रमुख अमृतपाल सिंह ने निर्दलीय उम्मीदवार को तौर पर चुनाव लड़ने से शिरोमणि अकाली दल समेत सभी दल पंथक सियासत के चक्रव्यूह में फंस गए हैं। स्थिति ऐसी बन गई है कि एक तरफ तो शिअद के वर्चस्व वाली एसजीपीसी अमृतपाल सिंह के केस की पैरवी कर रही है, तो वहीं शिरोमणि अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर बादल लगातार कह रहे हैं कि अमृतपाल बंदी सिंह नहीं है। उसकी लड़ाई सिर्फ अपने लिए है।

चिंता की बात ये है कि अमृतपाल को कई कट्टरपंथी धड़ों का साथ मिल रहा है। शिअद के नेता मंजीत सिंह ने भी पार्टी छोड़ कर अमृतपाल को समर्थन देने का एलान किया है। वहीं, सिमरनजीत मान के नेतृत्व वाले शिरोमणि अकाली दल (अमृतसर) ने अमृतपाल का समर्थन कर शिअद के लिए परेशानी खड़ी कर दी है। उन्होंने भी अपना प्रत्याशी वापस लेकर अमृतपाल का समर्थन कर दिया है।

2019 के लोकसभा चुनाव में खडूर साहिब से पंजाब एकता पार्टी से मानव अधिकार कार्यकर्ता मरहूम जसवंत सिंह खालड़ा की पत्नी परमजीत कौर खालड़ा ने चुनाव लड़ा और दो लाख से अधिक वोट लेकर तीसरे नंबर पर रहीं। यहां पर सिख संगठनों और वाम संगठनों ने मिल कर खालड़ा के लिए प्रचार किया। खडूर साहिब में अब शिरोमणि अकाली दल को अमृतपाल सिंह का विरोध करना पड़ रहा है। अमृतपाल सिंह को चुनाव आयोग ने ‘माइक’ चुनाव चिह्न दिया है।

बहुकोणीय है मुकाबला

अमृतपाल सिंह के आने से खडूर साहिब की चुनावी लड़ाई बहुकोणीय हो गई है। शिरोमणि अकाली दल- शिअद ने पूर्व विधायक विरसा सिंह वल्टोहा को मैदान में उतारा है। आम आदमी पार्टी ने परिवहन मंत्री लालजीत सिंह भुल्लर पर दांव खेला है। कांग्रेस ने पूर्व विधायक कुलबीर सिंह जीरा और बीजेपी ने मंजीत सिंह मियांविंड को अपना उम्मीदवार बनाया है।

बेअदबी का मुद्दा अब भी हावी

माझा बेल्ट की इस सीट पर इस बार भी बेअदबी का मुद्दा गर्माया हुआ है। इसके साथ ही बंदी सिंहों की रिहाई और अन्य पंथक मुद्दों को लेकर लोग मुखर हैं। शिअद के कार्यकाल में बेअदबी की घटनाओं, गुरमीत राम रहीम को श्री अकाल तख्त साहब से माफी, बरगाड़ी में सिख संगत पर गोलियां चलाने की घटनाओं ने पंथक वोटरों में अकाली दल (बादल) के प्रति गहरी नाराजगी पैदा कर दी थी। 2019 में अकाली दल लोकसभा चुनाव में दो सीटों पर सिमट गया। लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को 13 में से 8, अकाली -भाजपा गठबंधन को चार सीटें, ‘आप’ को सिर्फ एक सीट पर जीत मिली।

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