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जालंधर : हंसराज स्टेडियम की दुकानों पर कब्जे का मामला पहुंचा निगम कमिश्नर के दरबार, 2002 में खत्म हो गई थी लीज डीड

जालंधर, (PNL) : रायजादा हंसराज बैडमिंटन स्टेडियम की 8 दुकानों पर हुए कब्जे और सालों से बढ़ा हुआ किराया न देने का मामला निगम कमिश्नर आईएएस अभिजीत कपलिश के दरबार में पहुंच गया है। निगम कमिश्नर ने एक हफ्ते में मामले की जांच के आदेश देते हुए कहा कि अगर पब्लिक प्रॉपर्टी एक्ट का उल्लंघन पाया गया तो मामले में बनती कार्रवाई की जाएगी।

डिस्ट्रिक्टि बैडमिंटन एसोसिएशन के सचिव एवं पूर्व राष्ट्रीय खिलाड़ी रितिन खन्ना ने निगम कमिश्नर अभिजीत कपलिश से मुलाकात की। मुलाकात के दौरान उन्होंने डीबीए के माध्यम से एक पत्र सौंपा। पत्र में दुकानों के मामले में हुई कथित अनियमितताओं को उजागर किया गया है। पत्र में लिखा गया है कि रायजादा हंसराज बैडमिंटन स्टेडियम की 8 दुकानों को 1996 में 6 साल के लिए 8 लोगों को लाइसेंस डीड के तहत दिया गया था। लाइसेंस डीड की अवधि 2002 में ही खत्म हो चुकी है।

1996 में नगर निगम और डीबीए में समझौता हुआ था कि इन दुकानों से जो भी किराया आएगा उसका 35 प्रतिशत निगम के खजाने में जमा होगा और 65 प्रतिशत हिस्से को डीबीए खेल के विकास पर खर्च करेगी। इसके अलावा यह भी तय हुआ था कि अगर 2002 (6 वर्ष पूरे होने पर) के बाद भी कोई किरायेदार किसी समझौते या अन्य किसी आधार पर दुकान नहीं छोड़ता है तो किराया हर माह 10 प्रतिशत बढ़ जाएगा, लेकिन ऐसा 2023 तक संभव नहीं हो पाया और इतने सालों से ये कब्जाधारक निगम और डीबीए को कथित रूप से चूना लगा रहे हैं।

इस कारण नगर निगम और डीबीए को लाखों रुपए का नुकसान हुआ। सबसे अहम बात यह कि ये दुकानें शहर के पॉश एरिया में हैं और इनके आसपास मशहूर एमबीडी मॉल व रेडिसन होटल स्थित हैं। इस एरिया में कॉमर्शियल इमारत को अगर किसी ने किराए पर लेना हो तो उसे अच्छी खासी रकम खर्च करनी पड़ती है लेकिन हंसराज स्टेडियम की दुकानें नहीं छोडऩे वाले दुकानदार मात्र 8 हजार रुपए औसतन किराये पर दुकानों पर जमे हुए हैं। 20 साल से किराया बढ़ा भी नहीं है। 8 में से पांच दुकानें तो कथित रूप से सबलेट भी हो चुकी हैं। दूसरी बात इन दुकानों में अधिकतर कारों के सेल परचेज का काम होता है और रोड पर ही इनकी व इनके ग्राहकों की कारें अव्यवस्थित ढंग से खड़ी होती हैं जिससे रोड तो ब्लॉक रहता ही है वहीं राहगीरों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है।

घोटाले में एसोसिएशन के पूर्व कर्मचारी की मिलीभगत

जिन 8 लोगों को 1996 में दुकानें मिली थीं उन्होंने 2002 में लाइसेंस डीड खत्म होने के बावजूद जहां बिना बढ़ा हुआ किराया अदा किए दुकानों पर कब्जा जमाए रखा हुआ है वहीं इनमें से पांच लोग ऐसे हैं जिन्होंने खुद की बजाय किसी दूसरे शख्स को आगे करके उसको कथित रूप से दुकान पर कब्जा करवा दिया। यानि लाइसेंस डीड में जो नाम था उसके स्थान पर किसी अन्य नाम से दुकान पर कब्जा करके किराए की पर्ची नए नाम से बिना लाइसेंस डीड के कटवाई जाती रही।

इस मामले की शिकायत एसोसिएशन द्वारा जन शिकायत अधिकारी से भी की जा चुकी है और इन पांचों लोगों से जब जन शिकायत अधिकारी ने किरायेनामा व लाइसेंस डीड की कापियां मांगीं तो ये लोग कोई दस्तावेज प्रस्तुत नहीं कर पाए और इन्होंने सिर्फ कटी हुई पर्चियां दिखाई। एसोसिएशन द्वारा की गई प्राथमिक जांच में पता चला कि वर्ष 2003-04 के दौरान पांच दुकानों (दुकान नंबर 3,4,6, 7 और 8) में वास्तविक किराएदार के नाम की जगह कथित तौर पर नए पांच किराएदार आ गए और एसोसिएशन के तत्कालीन प्रशासक के साथ कथित तौर पर मिलकर किराये की पर्चियां बिना किसी लाइसेंस डीड के इन लोगों के नाम से कटनी शुरू हो गईं। जब 2021 में नए मेंबर सचिव रितिन खन्ना ने लाइसेंस डीड की कापियां निगम दफ्तर से मंगवाई तो इस मामले का खुलासा हुआ। उल्लेखनीय है कि एसोसिएशन के पुराने प्रशासक की करीब 10 साल पहले मृत्यु हो चुकी है।

दुकानदारों ने सरकार व एसोसिएशन को लाखों का चूना लगाया: रितिन खन्ना

रितिन खन्ना ने बताया कि दुकानदारों ने एसोसिएशन के पुराने कर्मचारी के साथ मिलकर कथित तौर पर घोटाला किया है। इनके खिलाफ डिप्टी कमिश्नर, निगम कमिश्नर को शिकायत की जा चुकी है। रिकार्ड खंगाला गया है और पूरे तथ्य निगम कमिश्नर व डीसी के समक्ष प्रस्तुत किए जा चुके हैं।

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